पता नहीं ये लिखना ठीक होगा या नहीं, मुझे नहीं मालूम। फिर भी इसे नजरंदाज करने का मन नहीं कर रहा है। इस कारण से लिख रहा हूँ। यह अपनी पोल खोलने जैसी बात होगी। चलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं। मैं और मेरी तरहमेरे तमाम साथियों ने अभी हाल में ही पत्रकारिता कि दहलीज के अन्दर कदम रखा है। हमने बाकायदा इसकीशिक्षा ली और इसके हर पहलु को जाना है। हाँ, लेकिन जो व्यावहारिक ज्ञान है वो इस दहलीज के अन्दर ही मिलरही है।
हमें पढाई के दौरान सिखाया गया कि पक्षपातरहित होकर खबर लिखनी है। लेकिन ऐसा हो नहीं पता है। कहीं भी कोई रिपोर्ट लेने जाओ तों आदमी कुछ न कुछ पकड़ा देता है। उसकी रिपोर्ट लिखते समय वह चीज यादरहती है। ऐसे में कैसे वो रिपोर्ट पक्षपातरहित हो सकती है। मेरी समझ में नहीं आता। ऐसा किसी प्रेस कान्फेरेंसऔर कार्निवल में अक्सर होता है कि हमें वहां जाने पर कुछ न कुछ मिल ही जाता है। लाख मना कीजिये लोग नहींमानते है। कोई मां होने की दुहाई देता है तों कोई बड़ा भाई होने का। इन स्थितियों से कैसे बचा जाये मुझे नहींमालूम। फिर भी कुछ स्थितियों को टला जा सकता है। दूसरी ओरएक दंभ कि नींव भी अन्दर पड़ चुकी है कि हमतों पत्रकार हैं। हमारा हर काम फ्री और बिना कुछ किए ही होना चाहिए। जैसे टिकट कि लाइन न लगना पड़े। याफिल्म देखने का पैसा न देना पड़े। इतना ही नहीं अपने तों देखें ही दूसरों को भी दिखाए। इसे छुपाने के लिए दूसरोंसे झूठ भी बोले। सब पढने के बाद भी हम ऐसा कैसे हो जाते हैं कि जो सिखा और समझा उसके उलट चलें। दूसरों की कमियों के पीछे पड़ रहते हैं, पर पता नहीं हम कब सुधरेंगे और पता नहीं। शायद इन स्थितियों से खुद ही बच सकते हैं। या शायद बचना ही नहीं चाहते।
हमें पढाई के दौरान सिखाया गया कि पक्षपातरहित होकर खबर लिखनी है। लेकिन ऐसा हो नहीं पता है। कहीं भी कोई रिपोर्ट लेने जाओ तों आदमी कुछ न कुछ पकड़ा देता है। उसकी रिपोर्ट लिखते समय वह चीज यादरहती है। ऐसे में कैसे वो रिपोर्ट पक्षपातरहित हो सकती है। मेरी समझ में नहीं आता। ऐसा किसी प्रेस कान्फेरेंसऔर कार्निवल में अक्सर होता है कि हमें वहां जाने पर कुछ न कुछ मिल ही जाता है। लाख मना कीजिये लोग नहींमानते है। कोई मां होने की दुहाई देता है तों कोई बड़ा भाई होने का। इन स्थितियों से कैसे बचा जाये मुझे नहींमालूम। फिर भी कुछ स्थितियों को टला जा सकता है। दूसरी ओरएक दंभ कि नींव भी अन्दर पड़ चुकी है कि हमतों पत्रकार हैं। हमारा हर काम फ्री और बिना कुछ किए ही होना चाहिए। जैसे टिकट कि लाइन न लगना पड़े। याफिल्म देखने का पैसा न देना पड़े। इतना ही नहीं अपने तों देखें ही दूसरों को भी दिखाए। इसे छुपाने के लिए दूसरोंसे झूठ भी बोले। सब पढने के बाद भी हम ऐसा कैसे हो जाते हैं कि जो सिखा और समझा उसके उलट चलें। दूसरों की कमियों के पीछे पड़ रहते हैं, पर पता नहीं हम कब सुधरेंगे और पता नहीं। शायद इन स्थितियों से खुद ही बच सकते हैं। या शायद बचना ही नहीं चाहते।
2 टिप्पणियां:
बहुत सही लिखा है आपने , लेकिन ये चीजें आपके राह का रोड़ा न बनें , उम्मीद करता हूं
Bade sachhe manse likhi huee post hai!
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