मंगलवार, 5 जनवरी 2010

सभी को नए साल की शुभकामनायें

सबसे पहले सभी को नए साल की ढेर सारी शुभकामनायें. इन पंक्तियों के रचनाकार हेलन को मैं नहीं जनता हूँ। लेकिन उन्होंने जो लिखा है वो आज प्रासंगिक है। हम आज किसी भी सुन्दर चीज देख नहीं सकते है, सिर्फ महसूस कर सकते है। शायद इसी कारण से देश में सिर्फ महंगाई, भ्रष्टाचार और गरीबी ही दिखाई देती है। नए साल पर हम सभी को शुभकामनायें देते हैं, लेकिन पुराने साल की अव्यवस्थाओं को भूल जाते हैं। ये ठीक भी है, फिर भी शुभकामनायें देने के इतर हमें नए साल में पुराने साल के दुखद घटनाक्रम न घटने का संकल्प लेना चाहिए। पुराने साल की घटनाओं की याद दिताला है। शायद आपको ठीक न लगे पर यह सच है। ये कविता मेरे एक दोस्त ने भेजी है। बुरा लगे तों माफ़ करियेगा।
साल २००९ जा रहा है......!!
अमीरों को और अमीरी देकर
गरीबों को और ग़रीबी देकर
जन्मों से जलती जनता को
महंगाई की ज्वाला देकर
साल २००९ जा रहा है.....
अपनों से दूरी बढ़ाकर
नाते, रिश्तेदारी छुड़ाकर
मोबाइल, इन्टरनेट का जुआरी बनाकर
अतिमहत्वकान्क्षाओं का व्यापारी बनाकर
ईर्ष्या, द्वेष, घृणा में
अपनों की सुपारी दिलाकर
निर्दोषों, मासूमों, बेवाओं की चित्कार
देकर साल २००९ जा रहा.....
नेताओं की मनमानी देकर
झूठे-मूठे दानी देकर
अभिनेताओं की नादानी देकर
पुलिस प्रशासन की नाकामी देकर
साल २००९ जा रहा.....

अंधियारा ताल ठोंककर
उजियारा सिकुड़ सिकुड़कर
भ्रष्टाचार सीना चौड़ाकर
ईमानदार चिमुड़ चिमुड़कर
अर्थहीन सच्चाई देकर
बेमतलब हिनाई देकर
झूठी गवाही देकर
साल २००९ जा रहा.....

धरती के बाशिंदों को
जीवन के साजिंदों को
ईश्वर के कारिंदों को
गगन के परिंदों को
प्रकृति के दरिंदों को
सूखा, भूखा और तबाही देकर
साल २००९ जा रहा.....
कुछ सवाल पैदाकर
कुछ बवाल पैदाकर
हल नए ढूंढने को
पल नए ढूंढने को
कल नए गढ़ने को
पथ नए चढ़ने को एक
अनसुलझा सा काम देकर
साल २००९ जा रहा.....
- हरिओम वर्मा

1 टिप्पणी:

kshama ने कहा…

Jo gaya so gaya..aaiye ham sab milke ek naya desh, naya Bharat baneki koshish karen!
Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!