पिछले हफ्ते चेन्नई जाने का अवसर प्राप्त हुआ. इसका कारण था आठवां भारतीय विज्ञान संचार कांग्रेस इस बार यहीं आयोजित किया गया था. इस चार दिवसीय सम्मेलन (10-14 दिसम्बर ) में भारत के अलग-अलग जगहों से विभिन्न विषयों पर अपने शोध प्रस्तुत किए. चार दिन के इस सम्मेलन में तीन दिन तो प्रेजेंटेशन देने के लिए थे और एक दिन भ्रमण के लिए था. इसी कार्यक्रम में मैं भी अपना शोध प्रस्तुत करने के लिए वहां गया था. मेरे शोध का विषय भी ब्लॉग से संबंधित था. विषय था ब्लॉग की दुनिया में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी. यह एक पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन था. मेरे साथ मेरे कई सारे सहपाठी भी गये थे और हमारे गुरुदेव भी साथ में थे. चेन्नई में चार-पॉँच दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. वहां से आने का मन ही नहीं कर रहा था. पहली बार दक्षिण में कहीं जाने का मौका मिला था और पहली बार ही समंदर से साक्षात्कार हुआ. चेन्नई या उसे देखने के बाद मैं ये कह सकता हूँ कि पूरा तमिलनाडु ही आधुनिकता के साथ आज भी अपनी परंपराओं को अपने अन्दर समेटे हुए है. जैसे कि हम वहां हर कहीं खाने के लिए प्लेट के ऊपर केले के पत्तों को रखकर खाया जाता है. इसके साथ ही उनका पहनावा भी आज भी परंपरागत ही है. महिलाएं साड़ी पहनती है, लड़कियां सलवार कमीज. हाँ महिलाएं बालों में गज़रा लगाना नहीं भूलती हैं. पुरूष कमीज और लुंगी पहनते है हालाँकि अब पैंट-शर्ट भी पहनते हैं तो माथे पर बिंदी जरुर लगाते है. यहाँ जितने भी लोगों से मिला वो बहुत ही अच्छे लगे. कुछ तमिल दोस्त भी बने जो अब हमेशा मेरे साथ रहेंगे. भाषा की बात करें तो तमिल के साथ अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते हैं, पर कहीं भी अंग्रेजी तमिल पर हावी होती नहीं दिखती थी. पहले तमिल फ़िर अंग्रेजी की बारी आती है. तमिलनाडु की तुलना अगर अन्य हिन्दी प्रदेशों से करें तो हम अभी पश्चिम को ठीक से समझ ही नहीं पाए हैं और उससे पहले ही अपनी परंपराओं से मुंह मोड़ते जा रहे हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. परम्पराओं से ही किसी भी सभ्यता कि पहचान होती है और उसको स्थायित्व मिलता है. खैर यह तो बहस का विषय है. सम्मेलन के दूसरे दिन की शाम होटल सवेरा में थी. यहाँ कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. यहाँ मेरे सहपाठियों और अन्य जगहों से आए लोगों ने अपनी इस प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया. मैंने भी अपनी कविता माँ वहां पर सुनाई. तीसरे दिन शाम को हमारे विश्वविद्यालय की तरफ़ से एक नाटक औजार कोई तरकीब कोई का मंचन किया गया. चौथे दिन घूमने के नाम रहा. इस दिन हमने खूब मस्ती का एक भी पल नहीं छोड़ा. हम इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र, कलपक्कम गये. उसके बाद महाबलीपुरम. चेन्नई की खूबसूरती को अपनी पहली कविता के माध्यम से बांधने का प्रयास किया है मेरी मित्र सुधा ने प्रस्तुत है ये कविता...
चेन्नई से मिला ढेर सारा ज्ञान,
नजदीक से जाना अब हमने विज्ञान।
यहाँ की यादें अब साथ लेकर जाना है,
औरों को अब समझाना और बतलाना है।
कहते हैं परंपरा जिसे, इस शहर में बसती है,
पाश्चात्य संस्कृति को भी साथ लिए चलती है।
आज भी यहाँ माथे पर टीका और बालों में गज़रा सजता है,
देश के प्रति प्रेम इनकी बोली में झलकता है।
कहते हैं खूबसूरती सभ्यता और संस्कृति में बसती है,
सभ्यता और संस्कृति दोनों ही यहाँ मिलाती हैं।
यहाँ के लोगों से सीखे आदर और सत्कार,
समंदर की लहरों से कोमल इनका प्यार।
सुधा प्रजापति
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर आलेख......अच्छा लगा।
तमिलनाडु कि वास्तविक संस्कृति देखनी हो तो कुम्बकोनम या फिर तंजाउर में मिलेगा. चेन्नई तो मिश्रित है. बहुत सुंदर लिखा है आपने. आभार.
जानकारीपूर्ण आलेख सुंदर रचना के साथ. आभार
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
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