सबसे पहले नए साल की सभी को शुभकामनाएं. नया साल सभी के लिये शुभ हो मंगलमय हो. काफी दिन बाद लिख रहा हूँ. इस वजह से शुभकामनाएं देने में थोड़ी देर हो गयी. खैर बिता वर्ष भी कुछ खट्टी-मीठी यादों के साथ बीत गया और हम फ़िर एक नए वर्ष में हस्तक्षेप कर चुके हैं. इस बीते साल में हमने कुछ ऐसी उपलब्धियां हासिल की, जिन्हें याद कर हम हमेशा गर्व करेंगे। वही कुछ ऐसी भी यादें इस बीते साल में याद रहेंगी, जिनकी याद आते ही बदन में सिहरन सी दौड़ जाएगी. अच्छी यादों में अमेरिका से परमाणु समझौता, बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक, चंद्रयान-1, वही बुरी घटनाओं में आतंकवाद का अंतहीन सिलसिला देखा गया, वो हमेशा याद रहेगा। इतना ही नहीं इस साल को हिंदू आतंकवाद के चेहरे से नकाब उतरने के लिए भी याद किया जाएगा। इस नए साल में हमें ये तय करना है कि अब हम इस वर्ष में क्या चाहते है? क्या हम फ़िर आतंकवादी घटनाओं को चाहते हैं, या फ़िर इन्हे रोकने कि भी कोई तैयारी कर रहे है। अब हमें ये समझ लेना चाहिए कि आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार कार्यवाही पर कम अपने बयानों पर भरोसा ज्यादा कर रही है. मुझे लगता है कि आतंकवाद के खिलाफ हमें ही अब एकजुट होना पड़ेगा. आतंकवाद का जो घिनौना चेहरा दिखाई पड़ा है वो पहले कभी नहीं दिखाई पड़ा था. मुंबई पर किया गया हालिया हमला इस बात का गवाह है कि आतंकवादियों को हमारी कर्मठता का अंदाजा हो गया है. उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि सरकार कुछ भी हो जाए कुछ करने वाली नहीं है. मैं यहाँ युवाओं की बात करना चाहूँगा, वर्तमान में जिस तरह की दुस्साहसिक घटना हो रही है, वह बिना हमारे अपने लोगों के हो ही नहीं सकती है. आख़िर वह कौन सी स्थितियां हैं, जिनके कारण ये सब हो रहा है कि हमारे अपने ही इस कम में देशद्रोहियों को साडी सुविधाएँ प्रदान कर रहे है. इस कार्यप्रणाली में सबसे ज्यादा अहम् हथियार के रूप में युवाओं का प्रयोग हो रहा है. युवाओं का प्रयोग खाद की तरह आतंकवाद की इस खेती में हो रहा है. अगर हम आज़ादी के दिनों को याद करें तो महात्मा गाँधी, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल आदि युवाओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देशद्रोहियों(अंग्रेजों) को देश से बाहर का रास्ता दिखाया था. फ़िर हमसे कहाँ चूक हो गयी. हमारे अपने ही आतंकवादियों का क्यों सहारा बन रहे हैं. मुझे लगता है कि गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के कारण हमारे युवा भटक गये हैं. आज का युवा भगत सिंह या महात्मा गाँधी के आदर्शों पे चलने की कोशिश नहीं कर रहा है. उसे तो अब एमटीवी रोडीज़ बनने की ख्वाहिश ज्यादा रख रहा है. शिक्षा से व्यक्ति में ज्ञान का सृजन होता है और व्यक्ति में अच्छे और बुरे के पहचान की क्षमता विकसित होती है. उसे समझ में आता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं. ऐसे में आजादी के इतने दिनों बाद भी क्यों हम संपूर्ण साक्षरता का लक्ष्य क्यों नहीं प्राप्त कर सके है? क्या यह हमारी प्राथमिकता सूची में नहीं था? 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में पुरे देश में मनाया जाता है। स्वामीजी की प्रतिमा पर खूब फूल-मालाएं चढ़ाई जाती है। खूब क़समें-वादें लिए और दिए जाते हैं कि ये किया जाएगा, वो किया जाएगा, पर कोई भी नतीजा नहीं निकालता है. तब तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जाता है, जबतक की दोबारा 12 जनवरी न आ जाए. मुझे लगता है कि शिक्षा कि परिधि को बढ़ाया जाना चाहिए और ऐसी शिक्षा हो जो सभी को रोजगार दिलाने वाली हो. हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा आबादी है और हम इनकी ताकत हो राष्ट्र के निर्माण में लगा सकते हैं। युवाओं में रचना और निर्माण की ताकत होती है. वृद्ध तो केवल ज्ञान दे सकते हैं. दूसरी तरफ़ बालक स्वयं निर्माण की प्रक्रिया में लगा होता है. अब हमें ये तय करना है कि हमें क्या करना है? इन्हे राष्ट्र निर्माण में लगना है या फ़िर मेरा भारत महान जैसे जुमलों पर केवल इतराना भर है.
शनिवार, 10 जनवरी 2009
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11 टिप्पणियां:
आपको नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ, आप युवाओं को प्रोत्साहित करते रहें, धन्यवाद!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
आपकी आमद का शुक्रिया .
यकीनन मेरी हौसला अफजाई हुई है .....
आपका लिखा हुआ आलेख बहोत ही प्रेरणादायक है, इस तरह के lekh लिखे जाते रहने चाहिए ताकि युवा वर्ग का मार्गदर्शन होता रहे , और हम सब का फ़र्ज़ भी बनता है कि साहित्य की इस विधा से भी जुड़े रहें .
बधाई स्वीकारें .....
---मुफलिस---
आपकी टिपण्णी का बहुत शुक्रिया ! आपका ब्लॉग पढने को वक्त नहीं मिला, अभी आफी में हूँ, इत्मीनान से पढूंगी !
... सच है युवाओं मे ऊर्जा होती है लेकिन संयम व एकाग्रता की कमी होती है , युवाओं की ऊर्जा का सही उपयोग अत्यंत आवश्यक है।
युवाओं में रचना और निर्माण की ताकत होती है. बहुत सुंदर आलेख देश के भविष्य होते हैं युवा ...
आपको नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ, "
regards
युवाओं में रचना और निर्माण की ताकत होती है. वृद्ध तो केवल ज्ञान दे सकते हैं.
sach hai..
Nav varsh ki hardik shubkamnayen.
आपके विचार प्रशंसनीय हैं...कामना करते हैं नव वर्ष आपके लिए ढेर सारी खुशियाँ लाए...
आप लोगों की टिप्पणियों का अवाम दिल से आपको शुक्रिया अदा करता है. मेरी मित्र रानू तोमर ने भी मेरे इस पोस्ट के लिए एक टिपण्णी दी है, जो इस प्रकार से है..
Comment of RANU TOMAR
We should deal with the matter as a whole rather than making it fragmented. Our youth is totally busy in pomp and show who do not care for nation at all. It is really serious problem but why we try to compare our youth to the hisotrical heros so far? Why we think that there are no one after those poster faces like Bhagat Singh, Sukhdev? Just they sacrificed their life. Why do we see heroism in sacrificing life only? Why we see patriotism in martyrdom only?
So just understand our circumstances where we need to get over with basic facilities like food, education, health, employment so that we can bring fecund mind for nation not followers. We have to live for the cause of nation rather than being martyr for nation.
Definitly we need realistic people not roadies.
युवाओं में रचना और निर्माण की ताकत होती है. वृद्ध तो केवल ज्ञान दे सकते हैं.
सही फरमाया आपने.
बधाई
12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में पुरे देश में मनाया जाता है...... पर कोई भी नतीजा नहीं निकालता है..... हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा आबादी है और हम इनकी ताकत हो राष्ट्र के निर्माण में लगा सकते हैं। युवाओं में रचना और निर्माण की ताकत होती है. वृद्ध तो केवल ज्ञान दे सकते हैं. दूसरी तरफ़ बालक स्वयं निर्माण की प्रक्रिया में लगा होता है. अब हमें ये तय करना है कि हमें क्या करना है? इन्हे राष्ट्र निर्माण में लगना है या फ़िर मेरा भारत महान जैसे जुमलों पर केवल इतराना भर है.....sahi kha aapne...
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