आज कल थोड़ा दुखी, निराश और नाराज हूं, अपने आसपास के लोगों को देखकर। अपने आसपास के माहौल और वातावरण को देखकर। अपने साथ पढ़ने वाले कुछ लोगों की बात करना चाहता हूं। अभी बिहार में आई बाढ़ ने वहां पर भारी तबाही मचाई है। वहां के लोग हैरान परेशान है। लाखों लोगों के कुनबे उजड़ चुके है। उनकी मदद के लिए देश में जगह-जगह से चंदा इकठ्ठा किया जा रहा है। मेरे संस्थान में भी इस तरह की मुहीम शुरू की गयी और पैसे भेजे जा चुके हैं। मैं बहुत खुश था कि चलो कुछ तों राहत उन्हें जरुर मिलेगी, क्योंकि हमारे भेजे गये एक रुपये से वहां माचिस खरीदी जा सकेगी। इस तरह की पहल होनी ही चाहिए। लेकिन मेरे विभाग से उतने पैसे नहीं मिल पाए जितने की मैं अपेक्षा कर रहा था। काफी लोगों ने अपने हाथ खड़े कर लिए पैसे देने के नाम पर। हमारे संस्थान से पढ़कर लोग पत्रकार बनते है, जिसका काम होता है लोगों के दुखों को अपनी लेखनी से दूर करना। यही नहीं जरुरत पड़े तों लोगों को आर्थिक मदद भी देना। हम भविष्य में पत्रकार बनेंगे तों क्या इसी तरह की संवेदनहीनता का परिचय देंगे। ऐसे में पत्रकारिता का क्या होगा? इसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। जब इस स्तम्भ की बुनियाद में हम जैसे असंवेदशील लोग होंगे तों क्या लोकतंत्र को मजबूत हो पायेगा। बात यही तक सीमित नहीं है। नल से पानी गिर रहा है, तों गिरने दो। कोई उसे बंद करने वाला नहीं है। अपने आसपास की व्यवस्था बिगाड़ने में हम किसी से पीछे नहीं है। आखिर कब हम ईमानदार और संवेदनशील होने का परिचय देंगे। यहां आकर बार-बार दिमाग में यही बात आती है कि कही मैंने गलती तों नहीं कर दी, अपने नौकरी के क्षेत्र को चुनने में। ऐसे लोगों के बीच रहकर क्या मैं ठीक से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाउँगा?
गुरुवार, 18 सितंबर 2008
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3 टिप्पणियां:
जन जागरुकता बहुत जरुरी है किसी भी व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए. अच्छा विचारणीय आलेख.
आपका सवाल ः ऐसे लोगों के बीच रहकर क्या मैं ठीक से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाउँगा?
गुस्ताखी माफ ः िबल्कुल कर पाएंगे- हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा। इसी यकीन के साथ प्रयास जारी रखें।
मेरे िचट्ठे www.gustakhimaaph.blogspot.com पर ताकझांक के िलए आपका स्वागत है।
dost yahan log journalism ko chhod professionalism par jyada dhyan de rahe hain......aapki shikayat, meri shikayat, hum subki shikayat yahi hai...........
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