फ़िर वही विस्फोट, फ़िर वही चीत्कार बस कुछ फर्क था, तों वो स्थान का। इस बार दहशतगर्दों ने निशाना बनाया देश की राजधानी दिल्ली को। पांच जगह विस्फोट हुए, २० से २५ लोग मारे गये, सैकड़ों घायल हुए। सब कुछ उसी तरह था जैसे कही और बम के फटने के बाद की स्थिति होती है। इतना ही नहीं अलग-अलग जगह पर होने वाले विस्फोटों में एक और समानता होती है और वह है हमारे नकारे और नामर्द नेताओं के बयान कि अब आतंकवाद के आगे घुटने नहीं टेका जाएगा। इसका सख्ती से मुकाबला किया जाएगा। इन नेताओं को शायद ये नहीं मालूम कि इस तरह के बयान केवल नामर्द ही देते है, जो कुछ कर तों पाते नहीं, बस अपने बयान के बिना पर ही ख़ुद को मर्द साबित करने की कोशिश करते है। इन्हे तों बस मुआवजा देने में ही लगता है कि विश्वास है। आतंकवादी खुलेआम आते है, बम रखते है और चले जाते है। यही नहीं बाकायदा अपने सर विस्फोट की जिम्मेदारी लेते है, अपना ईमेल आईडी भी देते है कि पकड़ सको, तों पकड़ लो। लेकिन न तों हमारी सरकार में दम है और न ही पुलिस में कि इनकी परछाई भी पकड़ सके। मुझे तों ये नहीं समझ में आता कि हमारे खुफिया विभाग क्या करते है। एक और बात कि इस बार जिस ईमेल आईडी का प्रयोग इन आतंकवादियों ने किया, उसका आईपी एड्रेस मुंबई के किसी कामरान पावर कंट्रोल प्राइवेट कंपनी का है। ये समझ नहीं आता है कि हर बार मुसलमान ही क्यों चुना जाता है किसी काम को अंजाम देने के लिए।
दूसरी बात मीडिया की करूँगा कि आख़िर कब मीडिया अपनी आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए ख़बरों को प्रसारित करेगा? दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट की ख़बर का प्रसारण करते समय तमाम मीडिया चैनलों ने एक मासूम का भविष्य दांव पर लगा दिया। यह वही बच्चा है जो की गुब्बारे बेच कर अपना जीवन यापन करता है। राहुल नाम के इस बच्चे ने बम को रखने वाले एक संदिग्ध को घटनास्थल पर बम रखते हुए देखा था। आतंकवादियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस का सहयोग करने वाला राहुल मात्र आठ वर्ष का है। कुछ एक चैनल को छोड़ कर सभी चैनलों ने आपसी होड़ में इस बच्चे का चेहरा साफ़-साफ़ दिखाया है। ऐसे में इस बच्चे का क्या भविष्य है। उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा फिलहाल तो मीडिया और पुलिस सभी इस बच्चे के साथ हैं, लेकिन सवाल यह है कि प्रशासन भी कब तक इसकी देख रेख कर सकेगा ? इस तरह के कई सारे प्रश्न शायद हमेशा अपना जवाब ढूंढ़ते रहेंगे।
सहयोग: सुधा प्रजापति
दूसरी बात मीडिया की करूँगा कि आख़िर कब मीडिया अपनी आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए ख़बरों को प्रसारित करेगा? दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट की ख़बर का प्रसारण करते समय तमाम मीडिया चैनलों ने एक मासूम का भविष्य दांव पर लगा दिया। यह वही बच्चा है जो की गुब्बारे बेच कर अपना जीवन यापन करता है। राहुल नाम के इस बच्चे ने बम को रखने वाले एक संदिग्ध को घटनास्थल पर बम रखते हुए देखा था। आतंकवादियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस का सहयोग करने वाला राहुल मात्र आठ वर्ष का है। कुछ एक चैनल को छोड़ कर सभी चैनलों ने आपसी होड़ में इस बच्चे का चेहरा साफ़-साफ़ दिखाया है। ऐसे में इस बच्चे का क्या भविष्य है। उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा फिलहाल तो मीडिया और पुलिस सभी इस बच्चे के साथ हैं, लेकिन सवाल यह है कि प्रशासन भी कब तक इसकी देख रेख कर सकेगा ? इस तरह के कई सारे प्रश्न शायद हमेशा अपना जवाब ढूंढ़ते रहेंगे।
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