आज हिन्दी दिवस है। आज हमारे विश्वविद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में लगातार तीसरे वर्ष 'भारतीय भाषाऑं में अंतरसंवाद' विषय पर संगोष्टी का आयोजन किया गया। हर बार की तरह इस बार भी देश के कई विद्वानों ने भाग लिया, जिनमें गोरखपुर से हिन्दी के प्रो. रामदेव शुक्ल, चंदामामा के पूर्व संपादक बाल शौरि रेड्डी और कथाकार श्रीमती मालती जोशी पधारे थे। सभी ने भारत की विभिन्न भाषाओँ के बीच अंतरसंवाद को जरुरी बताया। प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा कि भारतीय भाषाओँ में बहुत सौहार्द रहा है। भाषा आम आदमी बनाता है, हर स्थान पर भाषा बनती है, लेकिन भाषा बनाने वालें भाषा से भिज्ञ नहीं होते। अपने वक्तव्य में मालती जोशी ने कहा कि आज के बच्चों में हिन्दी के प्रति कोई रुझान नहीं देखा जा रहा है। ये हिन्दी को अब बोझा के रूप में ढ़ोते है, जो ग़लत है। वही एक तरफ़ स्थिति यह भी है कि बच्चे अब हिन्दी जानने के लिए ट्यूशन भी ले रहे है, जिसकी हम कुछ समय पहले तक कल्पना भी नहीं कर सकते थे। अंत में डॉ. बाल शौरि रेड्डी ने अपने विचारों को प्रकट करते हुए कहा कि भारतीय वांग्मय एक है, जो विविध भाषों में निहित है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक और कच्छ से लेकर कामख्या तक भारतीय संस्कृति एक है। जब तक हम हिन्दी नहीं जानेंगे, तब तक भारत के मूल श्रोत को नहीं जान पाएंगे। हिन्दी एक सशक्त भाषा है और उसमें सभी प्रकार के विचारों को प्रकट करने की क्षमता होती है। ये हमारा दुर्भाग्य है कि १० करोड़ (अंग्रेजी भाषी) लोगों की भाषा ११० करोड़ (हिन्दी भाषी) लोगों पर हावी है। आज त्रिभाषा सूत्र को लागू करने की जरुरत है। सबसे पहले अपनी मातृभाषा को जानो, फ़िर राष्ट्रभाषा को और तब अंग्रेजी भाषा को, पर यह सूत्र भी लागू नहीं हो पाया। भारतीय भाषाओँ का साहित्य हिन्दी में हो तथा अन्य भाषाओँ का साहित्य हिन्दी में हो, तभी परस्पर भारतीय भाषाओँ का अंतरसंवाद हो सकता है। |
रविवार, 14 सितंबर 2008
हिन्दी दिवस भाषाऑं में अंतरसंवाद
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