शनिवार, 12 जुलाई 2008

मनुष्य या सामान

इस समय मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को छोड़कर देश की राजधानी दिल्ली में कुछ समय गुजरने का मौका मिला है। दिल्ली और इससे सटा उत्तर प्रदेश का नॉएडा शहर हर मामले में भोपाल से आगे है। भोपाल में अभी ज्यादा भाग-दौड़ नहीं है, पर यहाँ तों काफी भीड़ तथा भागमभाग है। यहाँ की एक चीज बहुत बुरी लगी वो है यहाँ की बस सेवा। बस सेवा के मामले में भोपाल काफी ठीक है। भोपाल की जनसँख्या दिल्ली और नॉएडा के मुकाबले काफी कम है। इसलिए बस सेवा अभी ठीक-ठाक है। खैर दिल्ली की बसों में सवारियों को सामान की तरह ठूसा जाता है। जितनी सीट होती है उससे दुगनी सवारियां बसों में भरी जाती है। ऐसा केवल प्राइवेट बसों में ही नहीं बल्कि सरकारी बसों में भी किया जाता है। इसके बाद अपने से आगे के वाहनों को पछाड़ने की कोशिश में जितनी तेज़ हो सके बसों को चलाया जाता है। भले ही इससे किसी की जान चली जाय, पर आगे निकलना है तों निकलना है। अफ़सोस है कि न तों दिल्ली सरकार और न ही उत्तर प्रदेश सरकार इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठा रही है।

1 टिप्पणी:

PRAVIN ने कहा…

badhati sanvedanhinataa ke is yug men ,fir bhi ganimat hai.abhi nai vastuon ke prati kuchh aakarshan hota hai.

bhay hai to is baat kaa pashuta se apane ko alag kar apni ek sabhyata viksit karane ke baad ham fir pashutaa ki or hi na chale jay.

market aur sensex bhale hi nuksan aur laabh ke liye sanvedansheel hon lekin maanavataa ke liye inamen sanvedanaa dikhaai nahi deti.

paani ke bina choona ,sanvedanaa ke bina manushya hona samajh men nahi aataa.isake bina to mashin aur rakshas bana jaa saktaa hai.