शनिवार, 12 जुलाई 2008

मुफ्त में मिली आज़ादी को भुलाते लोग

इस समय ऐसे बहुत कम ही लोग होंगे जिन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया होगा। इस लड़ाई को करीब से जाना होगा और जो होंगे भी उनका सिर शर्म से झुक जाता होगा, जब उन्हें पढ़ने या सुनने को मिलता होगा कि अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ अंग्रेजों के कभी हाथ न आने वाले चंद्रशेखर आजाद को आतंकवादी बताया जाता है। चौकिये मत ऐसा ही हुआ है। अभी कल या परसों कि ख़बर है कि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की कक्षा बारह की इतिहास की किताब में इन सभी क्रांतिकारियों को बार-बार आतंकवादी कहा गया है, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने परिवारों को ही नहीं त्यागा बल्कि दुनिया को भी त्याग दिया। इन्ही बलिदानियों के अथक प्रयासों की वजह से ही आज हम आज़ादी का सूरज देख पा रहे है और खुली हवा में साँस ले पा रहे है। इस तरह की खबरें बताती है कि हमने इन क्रांतिकारियों के बलिदान को अब भुला दिया है। शायद हम सभी ने इसके लिए कीमत नहीं चुकाई है न तभी हम उन्हें भूल गये है। ये पहली बार नहीं हुआ है जब इनके लिए ऐसा कहा गया है, बल्कि रह-रह कर इस तरह की घटनायें होती ही रहती है। आखिर क्या हमारा अपने पूर्वजों के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं रह गया है, या हम केवल उन्ही पूर्वजों से मतलब रखते है जो हमारे अपने खून है? क्या देश को आज़ादी दिलाने वाली एकता कही खो गयी है? खैर ऐसी गलती वो करें जो पढ़े लिखे न हो तों समझ में आता है, पर पढ़े लिखे लोग जिनकी लिखी किताबें पाठ्यक्रमों में शामिल है, ऐसा वो करें तों यह माफ़ी के काबिल नहीं है। आखिर हम कौन सी नस्ल तैयार करने पर तुले हुए है? यहाँ गलती केवल इन्ही की नहीं बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की भी है, जो इस तरह की विवादास्पद किताबों को बिना जाँच किए ही पाठ्यक्रमों में शामिल कर देता है। आज शहीदों की आत्माएं भी हमें और हमारे रवैये को देखकर जरुर बेचैन हो जाती होंगी।

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सही विचार प्रेषित किए हैं।