शुक्रवार, 11 जुलाई 2008

विश्व जनसंख्या दिवस - ११ जुलाई

हर वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस जुलाई महीने के ११ तारीख को मनाया जाता है। इसके साथ ही कुछ गोष्ठियां व सम्मलेन आदि करके तथा जनसंख्या की भयावहता पर विचार कर हर दिवस की भांति इसको भी अगले एक साल तक, जब तक यह दिन दोबारा न आए, भुला दिया जाता है। हमारे देश के साथ दुनिया की आबादी भी दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ रही है और मेरे हिसाब से इसे रोकने के सारे प्रयास भी विफल साबित हो रहे है। आज विश्व की कुल जनसंख्या करीब ६ अरब ७० करोड़ ३५ हज़ार है, जबकि एशिया महाद्वीप की जनसंख्या अकेले लगभग ४ अरब के बराबर है। एशिया की यह जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या की ६० फीसदी है। इसी से ही एशिया और खासकर भारत के ऊपर जनसंख्या का बढ़ता दबाव ख़ुद-बखुद समझा जा सकता है। दुनिया में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश चीन है। चीन की जनसंख्या लगभग १ अरब ३३ करोड़ है, जबकि भारत की आबादी (लगभग १ अरब १४ करोड़) तेजी से इस जनसंख्या को पछाड़ने पर तुली हुयी है। भारत चीन को पछाड़ भी देगा, क्योंकि भारत में अभी भी जागरूकता और शिक्षा की कमी है। लोग में अभी भी जनसंख्या की भयावहता को समझ नहीं पा रहे है, कि यह भविष्य में हमें नुकसान कितना पहुचा सकती है। चीन की बात करें तों वह एक साम्राज्यवादी देश है। यहाँ लोगों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाकर जनसंख्या को रोकने का प्रयास भी किया जा रहा है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ ऐसा संभव नहीं है। बिना जागरूकता और शिक्षा के प्रसार के इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। अभी हाल में ही हमें दुनिया में बढतें खाद्यान संकट के लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। हमें यह तों अब समझ ही लेना चाहिए कि खाद्यान संकट तेजी से बढ़ रहा है। अन्न ही क्यों, अन्न के साथ जल संकट बढ़ रहा है। तेजी से बढती जनसंख्या ने प्रदुषण कि दर को भी धधका दिया है। जिससे जमीन की उर्वरता तेजी घट रही है तथा पानी का स्तर भी तेजी से घट रहा है। यदि हमनें समय रहते ही जागरूक प्रयासों से बढती जनसंख्या को नहीं रोका तों एक दिन भूख और प्यास से हमारें अपने ही बिलबिलायेंगे। बिना प्रति व्यक्ति जागरूकता और प्रति व्यक्ति शिक्षा के ऐसा सम्भव नहीं है। हमें बच्चे 'भगवान की देन' होते है, वाली मानसिकता का त्याग करना ही होगा वरना आने वाली परिस्थितियां अत्यन्त ही भयानक साबित होने वाली है।

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