दिन पर दिन खुलते मॉल्स ने छोटे कारोबारियों को निगलना शुरू कर दिया है। अनाज, मसाले, तेल, साबुन, सर्फ़, कॉपी-किताबें, दवाइयाँ, घड़ियाँ तथा कपडें आदि जो कभी अलग-अलग छोटे व्यापारियों द्वारा बेचा जाता था, वह इनसे छिनता जा रहा है। अब इन व्यापारों का एकीकरण करके बड़े-बड़े व्यावसायिक घरानों द्वारा मॉल खोले जा रहे है। इससे जो व्यापार कभी छोटे व्यापारियों के हाथ में था, वह अब इनके हाथ से फिसल कर बड़े व्यवसायियों के पास जा रहा है। ऐसा होने का सबसे बड़ा कारण है, सभी घरेलू और रोजमर्रा के सामानों का एक जगह और कम कीमत मिलना। साथ ही मॉल में समय-समय पर ग्राहकों को किफायती ऑफर भी दिया जाता है, जबकि छोटे व्यापारियों द्वारा ऐसा करना संभव नहीं होता है। सरकारी नीतियाँ भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। वर्तमान सरकार को तों केवल बड़े व्यापारी ही दिखाई दे रहे है। दूसरी तरफ मॉल्स को संचालित करते बड़े व्यावसायिक घराने बड़ी मात्रा में और सीधे कंपनियों से सस्ती दरों पर सामान खरीदते है। अब जाहिर सी बात है जो सस्ता खरीदेगा वो सस्ता बेचेगा भी। छोटे व्यापारी अपने से अपेक्षाकृत बड़े व्यापारी से सामान खरीदते है तथा ये बड़े व्यापारी अपने से बड़े व्यापारी से। इस प्रकार एक श्रृंखला के रूप में पैसा सभी के पास पहुंचता है और सभी का फायदा होता है। मॉल्स के खुलने से बीच के इन सभी छोटे व्यापारियों की जरुरत खत्म होती जा रही है और इनका व्यापार मंदी के दौर से गुजर रहा है। छोटे शहरों और कस्बों के हालात तों अभी ठीक है, पर बड़े शहरों के छोटे व्यापारियों की हालत पतली है। किसी व्यापार को चलाने के लिए पूंजी की जरुरत होती है और इतनी पूंजी इन छोटे व्यापारियों के पास नहीं है कि वे इन मॉल्स का सामना कर पायें। बाज़ार अब एक समुद्र बनता जा रहा है जहाँ बड़ी मछली छोटी मछलियों को निगलती जा रही है। अगर इन स्थितियों को समय रहते रोका नहीं गया तों ये छोटे व्यापारी सड़क पर आ जाएँगे।
मंगलवार, 15 जुलाई 2008
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1 टिप्पणी:
sahi likha..
magar yahi hona hai.. main nahi samajhta ki isme kuchh bhi badlaav aane vaala hai..
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