आज कल हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं, जहाँ ये विद्यमान न हो। अखबारों की दुनिया भी इससे अछूती नहीं है। अब राजस्थान पत्रिका का ही उदाहरण ले ले। राजस्थान पत्रिका अभी हाल में ही भोपाल में शुरू हुआ है। इसकी सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा दैनिक भास्कर से है। दैनिक भास्कर से टक्कर लेने के लिए यह अखबार कुछ भी करने को तैयार है। खैर इस बात को छोड़ दिया जाय और मैं अपनी बात करता हूँ। आज राजस्थान पत्रिका में संपादक के नाम एक पत्र आया है जो "वेणुगोपाल सुभानाल्लाह" के नाम से है। पत्र की खासियत ये है कि ये पत्र जिस नाम से छपा है, दरअसल इसमें जो लिखा है वो उसके द्वारा नहीं, बल्कि मेरे द्वारा लिखा गया है। इस बात की पुष्टि मेरे ब्लॉग www.gaonkichaupal.blogspot.com पर देख कर की जा सकती है। ये बात मैंने अपने ब्लॉग "चौपाल" में इसी माह की १८ तारीख को पोस्ट की है। पत्रकारिता में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता है, पर किसी और की अभिव्यक्ति किसी और के नाम से छापना मुझे लगता है की मेरी तरह औरों को भी बुरी लगेगी। पत्रकारिता में इस तरह की परिस्थितियों से बचना चाहिए। राजस्थान पत्रिका को इससे बचना चाहिए। मैं अभी छोटा हूँ, अभी पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा है। मैं जब भी किसी दूसरे का लेख अपने ब्लॉग पर लिखता हूँ, तों मैं उस श्रोत का नाम जरुर देता ह जिसने उसे वास्तव में लिखा है। पत्रकारिता में ईमानदारी से ही आगे बढ़ना चाहिए, न की चोरी से।
शनिवार, 31 मई 2008
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1 टिप्पणी:
mere dost mai jaanta hoon tumhe bura laga hai lekin mene koi chori nahi ki hai ha galti jaroor ki hai ki mene tumhara naam nahi diya iske liye mai tumse maafi mangta hoon.plz meri galti hai mujhe maaf kar dena lekin mera irada chori karna nahi tha............
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