अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में खाद्यानों की बढ़ती कीमतों ने सभी के कान खड़े कर दिए है। खाद्यानों की बढ़ती कीमतों के पीछे खाद्यान संकट को बताया जा रहा है। इस संकट से निपटने के लिए कुछ उपाय करने के बजाय कथित बुद्धिजीवी वर्ग (देश व विदेशों के) इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को खोजने में लगे है। सबसे ज्यादा आरोप हम भारतीयों पर लग रहे है कि भारत ही खाद्यान संकट का जिम्मेदार है। अमेरीकी राष्ट्रपति जनाब बुश तों पहले ही कह चुके है कि भारतीय ज्यादा खा रहे है इस वजह से यह संकट आ गया है। जनाब बुश के इस बयान के बाद भारतीय बुद्धिजीवी कहां चुप बैठने वाले थे और आ गया केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री कमलनाथ का बयान। उन्होंने उनके बयान की पुष्टि कर दी। इसके बाद बारी थी भारतीय उद्योग परिसंघ असोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत की। वह भी कहा पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी बुश के बयान से मिलता हुआ बयान दे डाला कि खाद्यानों की बढ़ती कीमत हमारे अच्छा खाने की ख्वाहिश से है। अब हम लोग क्या करे भाई, खा रहे है तों खा रहे है। पर क्या और लोग नहीं खा रहे है अब ज्यादा खा रहे है वो इसलिए क्योंकि हमारी आबादी ज्यादा है। लेकिन एक बात मैं कहूँगा जिनके पास शक्ति है वो इस समस्या से निपटने के बजाय इसके लिए जिम्मेदार लोगों को खोजने में क्यों लगे हुए है ? क्या एक ही देश बढ़ते खाद्यान संकट के लिए ही जिम्मेदार है और दूसरे देशों के लोग खाना नहीं खा रहे है ? शर्मनाक है कि हमारे नीति नियंता इस समस्या से निपटने के बजाय दोष निकालने में लगे हुए है।
रविवार, 18 मई 2008
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1 टिप्पणी:
jyada mehangyi par likh rahe ho mar padegi to samaj mei aa jayega tumko bhi
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