शनिवार, 3 मई 2008

मैं असभ्य हूँ क्योंकि

मैं असभ्य हूँ, क्योंकि खुले नंगे पाँव चलता हूँ।
मैं असभ्य हूँ, क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ।
मैं असभ्य हूँ, क्योंकि चीर कर धरती धान उगाता हूँ।
मैं असभ्य हूँ, क्योंकि ढोल पर बहुत जोर से गाता हूँ।

मैं सभ्य हूँ, क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर।
मैं सभ्य हूँ, क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर।
मैं सभ्य हूँ, क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी।
मैं सभ्य हूँ, क्योंकि जोर से पढ़ पाते हैं पोथी।

आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मरे।
आप सोचते हैं की सीखता यह भी ढंग हमारे।
मैं उतरना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती कुरता बहुत जोर से लिपटाये हूँ याने।
- भवानी प्रसाद मिश्र

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

beta tere din to nahin badal gaye hai
mere blog se teri koi dushmani hai
shiv