भोपाल में इन दिनों पानी की खूब समस्या है. यह समस्या पहले भी थी और मैं पूरे दावें के साथ कह सकता हूँ की आगे भी यह समस्या जस की तस बनी रहेगी. इस बार बारिश न होने से और पानी का समुचित संरक्षण न होने से पानी की विकट समस्या आन पड़ी है. भोपाल को झीलों का शहर कहा जाता है, लेकिन इसकी इस पहचान पर ही अब खतरा मंडरा रहा है. बारिश न होने की वजह से बड़ी झील का पानी निरंतर कम होता जा रहा है, जिसकी वजह से पानी की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है. यह इतनी विकराल हो गई है कि शिवराजजी को यह फरमान जारी करना पड़ा कि नगरवासियों को एक दिन छोड़ कर पानी दिया जाएगा. मेरा हौस्टल, जो भोपाल में मेरा आशियाना बन मेरे खानाबदोश जीवन पर अंकुश लगाये हुए है, भी इससे अछूता नहीं है. इस हौस्टल के ही एक बाशिंदे से मेरी जान-पहचान काफी देरी से हुई, लेकिन कुछ महीनों में ही उनसे अच्छी दोस्ती हो गयी थी. एक खास बात बताऊ मुझे उनकी अहमियत उनके हौस्टल से जाने के बाद पता चली. हौस्टल में पानी कि सारी जिम्मेदारी उन्होंने अपने कन्धों पर उठा रखी थी. एक ही दिन पानी आता है तो वे उसी हिसाब से पानी को उनके घरों में भर देते थे. उनके कारण पानी की समस्या नहीं होने पाती थी. उनके इसी गुण के कारण मैंने उन्हें होस्टल का भगीरथ नाम दिया, पर मुझे अफ़सोस है कि ये नाम उनके जाने के बाद दिया. वे भी यहाँ रहकर पढ़ाई कर रहे थे। अब उनकी पढ़ाई पूरी हो गई है और वे नौकरी की तलाश में अपने नए सफर पर निकल चुके है. उनका नाम आलोक है और वे बिन कहे जागरूक होने का प्रकाश फैलाते रहते थे और मुझे उम्मीद है कि उनके गुणों का प्रकाश एक दिन दूर-दूर तक फैलेगा. उनके प्रकाश से थोड़ा मैं भी प्रकाशित हुआ हूँ और जागरूक होने के कुछ लक्षण मुझमें भी दिखाई देने लगे है. मैं उनकी तरह शायद ही बन पाऊँ।
लोगों में पानी की बचत के प्रति जागरूकता का स्तर क्या है इसका पता इससे जुड़े जुमलों के साथ हुई छेड़खानी से पता चलता है. जैसे कुछ उदाहरण मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ. जल ही जीवन है कहीं लिख दिया जाय तो कुछ समय बाद यह किसी खुराफाती उत्प्रेरक की उपस्थिति में पेन से रासायनिक क्रिया कर जेल ही जीवन है में बदल जाएगा. इसी तरह प्रसाधन में अगर लिखा है कि कृपया उपयोग के बाद नल बंद कर दे, तो इस लाइन का बलात्कार करते हुए पूछा जाता है कि कौन सा अपना या..?
खैर भोपाल में थोड़ी जागरूकता बढ़ी है. पानी के संरक्षण के लिए बड़ी झील को लोगों द्वारा गहरा किया जा रहा है. बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा श्रमदान किया जा रहा है. बड़े लोग जो पानी को बचाने से ज्यादा अपनी गाड़ी, घर और पालतू जानवरों को नहलाने के प्रति ज्यादा चिंतित रहते हैं, वे भी श्रमदान के लिए आ रहे है है. पर अफ़सोस है कि इनका ध्यान झील को गहरा करने और मिट्टी को हटाने से ज्यादा मीडिया कवरेज पर होता है. एक निजी चैनल के कार्यक्रम में मैंने मुख्यमंत्रीजी से यह सवाल भी किया था कि एक दिन छोड़कर पानी देने का क्या मतलब? क्योंकि जिस दिन पानी आएगा उस दिन लोग दो दिन का पानी जमा कर लेंगे. साथ ही वे कहते हैं कि वे जनता के सेवक है तो मैंने उन्हें यह भी बताया कि आप के राज में जनता आधी रात को पानी भरती हुई नज़र आती है. इस सवाल को मुझे ऐसा जवाब नहीं मिला जो मुझे संतुष्ट कर पाता. अरे एक बात तो बताना ही भूल गया मुख्यमंत्रीजी भी सपरिवार श्रमदान करते अक्सर दिखाई दे रहे हैं. उम्मीद है कि उन्हें देख कर अन्य लोगों पर इसका कुछ असर होगा. भोपाल वासियों की तरह सारा संसार इसके बचत के प्रति जागरूक हो. लोग समझे कि प्रकृति उनकी आवश्यकता पूरी कर सकती है लालच नहीं और साथ ही इस कयास पर भी अंकुश लगे कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा.
7 टिप्पणियां:
प्रकृति उनकी आवश्यकता पूरी कर सकती है लालच नहीं.......सही है.....यदि लोग नहीं समझे तो तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए ही होगा।
ज़ुबानी जमा खर्च से ना तो आज तक कभी कुछ बदला है और ना ही आगे भी ऎसा होगा । तालाब बचाने की चाहत किसे है । देश में जब भी कहीं आपदा आती है चील गिद्धों की फ़ौज की जीभ लपलपाने लगती है । भोपाल की झील की मौत का मातम नहीं जशन मनाया जा रहा है । सिवाय ढोंग के कुछ नहीं हो रहा । ढाई सौ करोड रुपए खर्च होने के बाद अगर झील की ऎसी दुर्दशा है तो कौन ज़िम्मेदार है । भोजवेट लैंड परियोजना के उन कर्ता धर्ताओं को तो सीखचों के पीछे होना चाहिए । फ़िलहाल जो नाटक चल रहा है उसके पीछे भी किसी बडे फ़ंड की जुगाड और उसे हज़म करने की साज़िश है । वरना कुछ अखबार मालिकों को अचानक जल ही जीवन है या फ़िर अम्रतम जलम की सुध क्यों आ गई ? खैर इस देश में कभी कुछ नहीं बदलेगा । हर मौत किसी के लिए सौगात बन कर आती रही है आती रहेगी ।
ye sach me ek samvedanshil masla hai
तुम्हारी चिंता वाजिब है और तुम्हारे प्रश्न भी...हर व्यक्ति यदि अपने स्तर पर स्थिति की गंभीरता को समझेगा और पानी बचाने का प्रयास करेगा तभी कोई आस बंध पायेगी
जल को सहेजने की आवश्यकता तो है ही. आपकी चिंता जायज है. साथ ही सरिता जी की आशंका में भी वजन है-
'लैंड परियोजना के उन कर्ता धर्ताओं को तो सीखचों के पीछे होना चाहिए । फ़िलहाल जो नाटक चल रहा है उसके पीछे भी किसी बडे फ़ंड की जुगाड और उसे हज़म करने की साज़िश है ।'
आपकी चिंता जायज़ है !!
लोग समझे कि प्रकृति उनकी आवश्यकता पूरी कर सकती है लालच नहीं और साथ ही इस कयास पर भी अंकुश लगे कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा.....bilkul sahi kha aapne....!
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