मशहूर गीतकार शैलेन्द्र का जन्मदिन बीते ३० अगस्त को था। इसी दिन इनकी कुछ कविताओं को अपने ब्लॉग पर लिखना चाहता था, पर समय के अभाव में लिख नहीं पाया। उनकी लिखी कवितायें आज भी हमारे देश की वर्तमान स्थितियों पर एकदम सटीक बैठते है। उनकी कवितायों को लिखने से पहले उनके बारें में कुछ बताना चाहता हूँ। उनका जन्म ३० अगस्त, १९२३ को रावलपिंडी( अब पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिताजी फौज की नौकरी से रिटायर होने के बाद सपरिवार मथुरा में रहने लगे। १९४२ में शैलेन्द्र बम्बई आ गये। भारतीय रेलवे में फीटर का काम करते थे। १९४६ में बम्बई में प्रगतिशील साहित्यकारों की संस्था 'इप्टा' से जुड़ गये और कविताएँ लिखना शुरू कर दिया। शोमैन राजकपूर ने इन्हे फिल्मों में लिखने को कहा, पर इन्होने इसे ठुकरा दिया। १९४८ में शादी के बाद आर्थिक तंगी से परेशान, इन्होने राजकपूर से पैसे उधार लिए। इसी के बाद से राजकपूर और इनका साथ ऐसा बना कि राजकपूर कि लगभग सभी फिल्मों के लिए इन्होने गीत लिखे। बरसात इनकी पहली फ़िल्म थी, जिसमें इन्होने गीत लिखे। इसके बाद आवारा, बूट पॉलिश, जागते रहो. जिस देश में गंगा बहती है, श्री ४२०, संगम आदि कई सुपरहिट फिल्मों के गीत लिखे। कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु कि कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर एक फ़िल्म 'तीसरी कसम' बनाई, जो चल न सकी. उसके बाद आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से टूट जाने के कारण शराब के नशे में ऐसा डूबे कि कभी निकल ही नही पाए। १४ दिसम्बर १९६६ को यह जनकवि हमसे सदा-सदा के लिए विदा हो गया. मैं उनकी कुछ कविताएँ दे रहा हूँ, जो आज भी प्रासंगिक है-
भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की।
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की।
वही नवाब, वही राजे, कोहराम वही है,
पदवी बदल गयी, किंतु निजाम वही हैं,
थका हुआ मजदूर वही, दहकान वही है,
कहने को भारत वर्ष पर हिंदुस्तान वही है।
छापा बदला किंतु वही सिक्का ढलता है,
घटे पौंड की पूंछ पकड़कर रूपया चलता है।
शायद अब मुझे इसके आगे कुछ कहने की जरुरत नहीं है..
7 टिप्पणियां:
bhai wah, shailendra sahab ke baare men padhkar achcha laga
email address do cman@in.com par mail kar do , word verification hatao
बहुत खूब
शैलेन्द्र जी पर जानकारी बढ़िया रही
बधाई
भाई आपने शैलेन्द्र जी क बारे मई लिखा है वह तो ठीक रहा मगर एक बात और है इसे आप ठुकरा नही सकते आपने लिखा कि इनको शादी के बाद सफलता मिली लेकिन दोस्त इतिहास गवाह है कि अगर नारी सफलता के पीछे है तो असफलता का प्रमुख कारन भी वही रही है
महोदय आपके द्वारा लिखा गया लेख वाकई बहुत खुबसुरत है आपने लिखा है की सैलान्द्र की सदी होने के बाद ही उन्हे सफलता और राजकपूर की दोस्ती मिली मेरी हार्दिक इचा है की आप भी सदी करके नम कमाई करे क्योकी आपके सचाई प्यार की तलास आब पुरी नही होगी इसकी इक वजह यह भी है की आप बेवफा है दुसरो की भावनाओ को नही समझते आप को तो यही कहा जा सकता है की
धन्य हो वीर चुपके साईं चला दो तीर
prasant apne bahut achhi bat batae ki vah jankavi the. jo aj
ke kaviyo me jan kavita bahut kam dekhane milti hai.
dil ka hal kahe dil wala
sidhi bat na mirch mashala......
thanx
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