संप्रग से लेफ्ट के समर्थन वापसी के साथ ही देश में जोड़-तोड़ की राजनीति की शुरुआत हो गयी है। संप्रग सरकार अपनी सत्ता बचाने के लिए तरह-तरह के जतन करने में जुट गयी है। गौरतलब है परमाणु करार के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापसी के लिए कई महीनों से चिल्ला रही लेफ्ट ने आखिर कुछ दिनों पहले सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर ही दी। करती भी क्यों नहीं, अब आम चुनाव जो एकदम नजदीक आ गये है। अब किसी को कोई फर्क नहीं पढता कि सरकार रहे या न रहे। लेफ्ट का साथ छूटने के बाद समाजवादी पार्टी सरकार के लिए संजीवनी बन कर सामने आई है और समर्थन देने की घोषणा की है। पर अभी भी सरकार को डर है की कही गद्दी का साथ छूट न जाए। इसलिए उसने कई दलों से हाथ भी मिलाने की कोशिश की। यहाँ तक की इसके लिए सांसदों के खरीद-फरोख्त का भी आरोप सरकार पर लग रहा है। इस पर भी उसे किसी दल से कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला है। अकाली दल ने दो टूक जवाब दे दिया की सरकार सिख विरोधी है। अतः समर्थन देने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने फ़िर भी हार नहीं मानी है। अब वह चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल को अपनी तरफ़ खीचने के लखनऊ के अमौसी एअरपोर्ट का नाम बदलकर स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह एअरपोर्ट कर दिया है। अब देखते है इसका अजित सिंह पर कितना असर पड़ता है, क्योंकि वे इसकी मांग काफी पहले से ही कर रहे थे और शायद वे समझ भी रहे होंगे की संप्रग सरकार ने ऐसा क्यों किया। अजित सिंह और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन को मंत्री बनाये जाने की भी संभावना है। फिलहाल संप्रग सरकार की साँस अटकी रहेगी, जब तक की वह विश्वास मत के अखाड़े में वह विरोधियों को चित करने में सफल नहीं हो जाती।
गुरुवार, 17 जुलाई 2008
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1 टिप्पणी:
देखा चरण सिंग एयरपोर्ट का समाचार..अभी और तमाशे देखते चलिये इस खेल के/
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