शनिवार, 31 मई 2008

हाल-ऐ-हिंदुस्तान

घबराईये और डरिये मत मैं पूरे हिंदुस्तान की बात नहीं करने वाला हूँ। मैं अभी उतना बड़ा नहीं हुआ हूँ कि पूरे हिंदुस्तान की बात कर सकूं। मैं बात कर रहा हूँ देश के प्रतिष्ठित अखबार हिंदुस्तान दैनिक की, जो दिल्ली से छपता और शाम को भोपाल आता है। हाल ही इस अख़बार ने अपना ले-आउट बदला है, पर अफ़सोस गलती करने कि अपनी पुरानी आदतों को नहीं बदला है। मैं इस अख़बार का नियमित पाठक हूँ। रोजाना इस अख़बार से पढ़ते वक्त दस से पन्द्रह गलतियाँ मुझे मिल ही जाती है। ऐसा लगभग हर पेज पर ही होता है। अभी कल की ही बात है। कल इस अखबार में आधुनिक पंचकन्याएं शीर्षक से एक समाचार छपा है। इसमें उन महिलाओं का जिक्र किया गया है, जो अकेले रह कर भी बाहुबलियों के खिलाफ लड़ाई जीती। इसमें प्रियदर्शिनी मट्टू का केस लड़ने वाली उनकी सहेली इंदु जलाली, बिलकिस बानो, नीलम कटारा, जेसिका लाल की बहन सबरीना लाल और नीलम कृष्णमूर्ति का जिक्र था। वही उपहार सिनेमा घर अग्निकांड मामले में लिखा गया था कि हाल में १३ जून, १९९७ को शो के दौरान आग लग गयी जिसमें ५७ लोग मारे गए। यहाँ मुझे हाल में और १३ जून, १९९७ का सम्बन्ध नही समझ आया। क्या १९९७ अभी हाल में गुजरा है? इसी तरह कुछ दिन पहले एक ख़बर के शीर्षक में विश्वविद्यालय कि जगह विश्वविद्याल लिखा गया था। दैनिक समाचारों में तेज काम करना पड़ता है, पर इतनी भी तेजी ठीक नहीं कि गलतियों पर गलतियाँ होती रहे।

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