मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

इमोशन या नौटंकी

हाँ मेहरबान, कद्रदान और साहेबान दुनिया में कुछ ऐसे भी बान होतें हैं जो किसी की इमोशन को नौटंकी समझते हैं। क्या ऐसे लोगों को इमोशन लेस कहना ठीक होगा। मुझे लगता है कि ऐसा कहना और सोचना दोनों ही ठीक होगा। जो लोग दूसरे कि इच्छाओं को न समझे, उनकी भावनाओं न समझे शायद उनके अन्दर कुछ नहीं होता है। ना ही दिल और ना ही दिमाग। वे इन्सान नहीं होते हैं, बल्कि इन्सान के रूप में चलते-फिरते मशीन। इसमें उनकी गलती नहीं होती है बल्कि ये गलती तों भगवान की होती है, जो उन्हें बनाते वक्त उनमें दिल लगना भूल जातें हैं। खैर दिल तों सबमें होता है, पर इनके अन्दर लोहा मिश्रित दिल भगवान लगा देते हैं पर भगवान को थोड़ा सोचना जरुर चाहिए।
अब भगवान क्या जाने कि इस तरह के लोगों से नीचे वालों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है। भगवान को समझाना चाहिए कि नीचे वालों में कुछ ऐसे लोग भी रहतें है, जिनके पास उस तरह का दिल होता है जो किसी के लिए धड़कता है, किसी के लिए उसमें लगाव होता है, किसी के लिए प्यार होता है और किसी के लिए भावनाएं होती हैं। भगवान को ये सब सोच समझ कर ही लोगों को अपने कारखाने में बनाना चाहिए।
इस तरह के लोग जब आपसे मिलते हैं तों लगता है की अपना सब-कुछ आप पर लुटा देंगे। इतना प्यार, इतना प्यार आपको मिलेगा की आप सब भूल जायेंगें, यहाँ तक की अपने परिवार को भी। फिर आप उनके प्रति पागल हो जायेंगे। हर जगह आपको वही नजर आता है। इसे कुछ लोग प्यार कहेंगे, मैं इसे लगाव कहूँगा। इसका कारण यह है कि यह किसी से भी हो सकता है। वह व्यक्ति लड़का भी हो सकता है और लड़की भी। ऐसे लोग क्यों किसी के साथ ऐसा करते है कि पहले उसके एकदम करीब आते है और बाद में आपसे दूर होने लगते हैं। ये ऐसी बात करते है कि जैसे अपना सारा प्यार आपके ऊपर ही उड़ेल देंगे। आप पर सब कुछ लुटा देंगे, इस तरह का बर्ताव करतें है और फ़िर धीरे-धीरे दूरी बनाने लगते हैं। फ़िर अभी सामने वाले को ऐसा कुछ समझ में नहीं आ पता है कि क्या हो रहा है। वह केवल उनके जाने से उनके और पास आने कि कोशिश करता है, पर वो और दूर जाने लगता है।
उसके बाद शुरू होता है दोनों में एक-दूसरे की बुराईयाँ देखने का सिलसिला। इसके पहले दोनों को उनकी आदतें खूब भातीं हैं, पर अब यही आदतें और खासियतें बुराईयों का रूप लेने लगतें हैं। फ़िर अगला चाहे कितना भी आपसी संबंधों को ठीक करना चाहे दूसरा नहीं सुनता है, क्योंकि उसे तों सब कुछ खत्म करना होता है तों वह कैसे सब ठीक करने की ओर आगे बढ़ें। नतीजा वही होता है जो सब कुछ ख़त्म कर के रख देता है। ऐसा उन सभी छोटे शहरों से आए लोगों के साथ होता है जो बड़े शहरों में रहने वालें लोगों की आदतों से ठीक वाकिफ नहीं होते है। फ़िर सबसे ज्यादा दुःख भी उन्हें ही झेलना पड़ता है क्योंकि सामने वाले को तों ये सब करने में महारथ हासिल होता है। मेरे ख्याल से ऐसे लोगों को ही सज़ा मिलनी चाहिए ताकि वो भविष्य में ऐसे संबंधों को बनाने से परहेज करें।