मैं कभी बतलाता नहीं...
पर semester से डरता हूँ मैं माँ,
यूं तो मैं दिखलाता नहीं...
grades की परवाह करता हूँ मैं माँ,
तुझे सब है पता....है न माँ,
तुझे सब है पता....है न माँ,
किताबों में ...यूं न छोड़ो मुझे
chapters के नाम भी बता ना पाऊँ माँ,
वह भी तो ...इतने सारे हैं की,
याद भी अब तो आ न पाएं माँ,
क्या इतना गधा हूँ मैं माँ,
क्या इतना बड़ा गधा हूँ मैं माँ,
जब भी कभी invigilator मुझे,
जो गौर से आँखों से धुरे है माँ,
मेरी नज़र question पेपर,
ढूंढे सोचूं कोई सवाल बन जाये इसकी माँ,
उनसे मैं ...ये कह पाता नहीं
पर बगल वाले से टीपता हूँ मैं माँ,
चेहरे पे आने देता नहीं...
दिल ही दिल में मैं घबराता हूँ माँ,
तुझे सब है पता है न माँ,
तुझे सब है पता है न माँ...
गौरव श्रीवास्तव
सोमवार, 21 अप्रैल 2008
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