ये पहली बार है कि दीपावली में घर नहीं जा रहा हूँ। आज से पहले तक घरवाले कह भी रहे थे कि घर आ जाओ पर अब वो भी जान गये है कि अब घर समय से नहीं आ पायेगा। ये तो अब हमारी नियति बन गयी है कि अब हमें घर से बाहर ही सभी त्योहार मनाने है। इस बार सर के साथ डिपार्टमेन्ट में ही दीवाली मनानी है। घर की बहुत याद आ रही है, पर कुछ भी कर नहीं सकता हूँ। अब चला भी जाऊँ तो सही समय पर पहुँच ही नहीं सकता। इस वजह से अब घर वालों ने आने कि आस भी छोड़ दी है। खैर अब तो यही पे मानना है और भी तो होंगे इस ज़माने में मेरी तरह जो आज अपने-अपने घर नहीं जा पाए होंगे। इस बार न तो कोई लक्ष्मीजी की मूर्ति देख पाउँगा और न ही ज्यादा से ज्यादा लड्डू ही खा पाउँगा। बहनों के साथ ताश का मजा भी अधूरा रह गया। अब तो ऐसे ही रहना है आजीवन। दीपावली की मेरी तरफ़ से सभी को शुभकामनाएं और सभी को आशीर्वाद दीजिए कि सभी अपने-अपने घर पर ही दीपावली मनाये। एक कविता लिखा है किसी दिन और लिखकर आप लोगों को पढ़ने के लिए आग्रह करता हूँ।
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008
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5 टिप्पणियां:
Bahut sundar sabd chitran. Deepavali ke deepakon ka prakash aapke jeevan path ko aalokit karta rahe aur aapke lekhan ka margdarshan karta rahe, yahi shubh kamnayen.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
जहाँ भी हों मिलकर मनाएँ तो दीवाली !
आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
tyohar me ghar na ja pane ka dukh apki es post me saf jhalkta hai. lekin prasant ji ese niyati na kah kar situation kahe to sayad behtar hoga. kyoki ham sab conditions ke gulam hai.mera dard apse alag nahi hai, dher sara ladoo na kha pane ka gam apka ur mera v... sumit
tyohar me ghar na ja pane ka dukh apki es post me saf jhalkta hai. lekin prasant ji ese niyati na kah kar situation kahe to sayad behtar hoga. kyoki ham sab conditions ke gulam hai.mera dard apse alag nahi hai, dher sara ladoo na kha pane ka gam apka ur mera v... sumit
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