"असो बउरहवा बउराईल बा" घबराईये मत मैं भोजपुरी में नहीं लिखने वाला हूँ। ये तों आज एक वाकया याद आ गया तों सोचा आपको वो वाकया ही सुना दूँ। जुलाई में दिल्ली से घर(गोरखपुर) आ रहा था तों ट्रेन में एक व्यक्ति से मुलाकात हुई। वो मेरे साथ वाली सीट पर ही बैठा था। ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं लग रहा था। वैसे मैं संकोची स्वभाव का होने के नाते जल्दी किसी से बात नहीं करता, पर पता नहीं क्यों ऐसे ही उससे कह पड़ा कि इधर काफी बारिश हुई है। मेरे इतना कहते ही वो कह उठा, मानो मेरे बोलने का ही इंतजार कर रहा हो। उसने कहा कि "असो बउरहवा बउराईल बा"। मैं बताना चाहता हूँ कि ये हमारे यहाँ कि भोजपुरी भाषा है और आम तौर पर सभी अमीर या गरीब संचार के लिए इसी भाषा का प्रयोग करते है। अब मैं इसका अर्थ बताता हूँ। इसका अर्थ है कि इस साल शंकर भगवान नाराज हो गये है। "असो" का मतलब इस साल, "बउरहवा" का मतलब भगवान शंकर और "बउराईल बा" का अर्थ है तांडव कर रहे है या नाराज है। जुलाई और अगस्त का महीना सावन का महीना होता है। सावन में लोग भोले बाबा को जल चढाते है। मेरे यहाँ से लोग बिहार में बाबा के ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम जाते है जल चढाने के लिए। इस महीने में खूब बारिश होती है। नतीजतन हर एक दो साल पर बिहार और उत्तर प्रदेश बाढ़ की चपेट में आ ही जाते है। इस बार तों हद ही हो गयी, जब पूरे पूर्वांचल में करीब दो से ढाई महीने लगातार बारिश हुई है। लोगों का घरों से निकलना दूभर हो गया था और सभी की रोजी रोटी खतरें में पड़ गयी थी। मेरा घर तों शहर में है पर गांवों की हालत दयनीय बनी हुई थी। मेरे घर पहुचने तक बारिश तों रुक गयी थी, पर चारों तरफ़ बाढ़ आई हुई थी। ट्रेन से जिधर भी देखता उधर पानी ही पानी दिखाई देता। राप्ती नदी का पानी अपनी सीमाओं को तोड़कर सभी को अपने आगोश में समेट लेना चाहता था। चाहे वो घर हो, पेड़ हो, पशु हो, आदमी हो सब कुछ। खैर मेरे भोपाल वापस आने तक वहां स्थिति सामान्य हो चुकी थी। अब यहाँ पहुँचा तों अख़बार में रोज ख़बर आ रही है कि अब बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी नाराज हो गयी। इस नदी में आई बाढ़ ने बिहार के कई जिलों को अपने चपेट में ले लिया है और अभी भी लगातार तबाही जारी है। एक-दो साल के अंतराल में इन दो अति पिछड़े और बीमारू राज्यों में बाढ़ जरुर आती है, पर फ़िर भी प्रशासनिक स्तर पर कुछ भी नहीं किया जाता है। न तों कभी बांधों को ऊँचा करने का काम किया जाता है और न ही नए बाँध ही बनाये जाते है। राज्य और केन्द्र सरकार बाढ़ राहत सामग्री भेज देती है। कुछ मुआवजा दे दिया जाता है और काम खत्म। कभी भी किसी भी प्रकार का दूरगामी प्रयास नहीं किया जाता है कि बाढ़ आने से रोका जा सके। इन दो राज्यों को एक सजा और मिलती है और वो है इनका नेपाल से नजदीक होना। जब भी नेपाल कि नदियों पानी अधिक हो जाता है तों वो भारत में पानी छोड़ देता है। ऐसी स्थितियों में तों केवल यही कहा जा सकता है कि "असो बउरहवा बउराईल बा"।गुरुवार, 28 अगस्त 2008
असो बउरहवा बउराईल बा
"असो बउरहवा बउराईल बा" घबराईये मत मैं भोजपुरी में नहीं लिखने वाला हूँ। ये तों आज एक वाकया याद आ गया तों सोचा आपको वो वाकया ही सुना दूँ। जुलाई में दिल्ली से घर(गोरखपुर) आ रहा था तों ट्रेन में एक व्यक्ति से मुलाकात हुई। वो मेरे साथ वाली सीट पर ही बैठा था। ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं लग रहा था। वैसे मैं संकोची स्वभाव का होने के नाते जल्दी किसी से बात नहीं करता, पर पता नहीं क्यों ऐसे ही उससे कह पड़ा कि इधर काफी बारिश हुई है। मेरे इतना कहते ही वो कह उठा, मानो मेरे बोलने का ही इंतजार कर रहा हो। उसने कहा कि "असो बउरहवा बउराईल बा"। मैं बताना चाहता हूँ कि ये हमारे यहाँ कि भोजपुरी भाषा है और आम तौर पर सभी अमीर या गरीब संचार के लिए इसी भाषा का प्रयोग करते है। अब मैं इसका अर्थ बताता हूँ। इसका अर्थ है कि इस साल शंकर भगवान नाराज हो गये है। "असो" का मतलब इस साल, "बउरहवा" का मतलब भगवान शंकर और "बउराईल बा" का अर्थ है तांडव कर रहे है या नाराज है। जुलाई और अगस्त का महीना सावन का महीना होता है। सावन में लोग भोले बाबा को जल चढाते है। मेरे यहाँ से लोग बिहार में बाबा के ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम जाते है जल चढाने के लिए। इस महीने में खूब बारिश होती है। नतीजतन हर एक दो साल पर बिहार और उत्तर प्रदेश बाढ़ की चपेट में आ ही जाते है। इस बार तों हद ही हो गयी, जब पूरे पूर्वांचल में करीब दो से ढाई महीने लगातार बारिश हुई है। लोगों का घरों से निकलना दूभर हो गया था और सभी की रोजी रोटी खतरें में पड़ गयी थी। मेरा घर तों शहर में है पर गांवों की हालत दयनीय बनी हुई थी। मेरे घर पहुचने तक बारिश तों रुक गयी थी, पर चारों तरफ़ बाढ़ आई हुई थी। ट्रेन से जिधर भी देखता उधर पानी ही पानी दिखाई देता। राप्ती नदी का पानी अपनी सीमाओं को तोड़कर सभी को अपने आगोश में समेट लेना चाहता था। चाहे वो घर हो, पेड़ हो, पशु हो, आदमी हो सब कुछ। खैर मेरे भोपाल वापस आने तक वहां स्थिति सामान्य हो चुकी थी। अब यहाँ पहुँचा तों अख़बार में रोज ख़बर आ रही है कि अब बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी नाराज हो गयी। इस नदी में आई बाढ़ ने बिहार के कई जिलों को अपने चपेट में ले लिया है और अभी भी लगातार तबाही जारी है। एक-दो साल के अंतराल में इन दो अति पिछड़े और बीमारू राज्यों में बाढ़ जरुर आती है, पर फ़िर भी प्रशासनिक स्तर पर कुछ भी नहीं किया जाता है। न तों कभी बांधों को ऊँचा करने का काम किया जाता है और न ही नए बाँध ही बनाये जाते है। राज्य और केन्द्र सरकार बाढ़ राहत सामग्री भेज देती है। कुछ मुआवजा दे दिया जाता है और काम खत्म। कभी भी किसी भी प्रकार का दूरगामी प्रयास नहीं किया जाता है कि बाढ़ आने से रोका जा सके। इन दो राज्यों को एक सजा और मिलती है और वो है इनका नेपाल से नजदीक होना। जब भी नेपाल कि नदियों पानी अधिक हो जाता है तों वो भारत में पानी छोड़ देता है। ऐसी स्थितियों में तों केवल यही कहा जा सकता है कि "असो बउरहवा बउराईल बा"।
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4 टिप्पणियां:
अरे भाई साहब आप कब साईं सकोची हो गये आप के खुराफाती दिमाग मे कुछ चलने के कारण आप कुछ सोच ही रहे थे और रही बात बीमारू राज बिहार कहने साईं पहले सुजीत के कहर का डर आपको नही सताया. आपको यह जानना होगा की आपकी द्वारा ही बनाई गई उक्ति है की जे माँ संतोषी होस मे रहे पडोसी. और रही बात बाढ़
बाढ़ की तो उनकी साथ हम लोगो की पुरी सवादेना साथ है . आप के द्वारा लिखा गया लेख भुत अछा है.
अच्छा आलेख!!बधाई.
prashant...sir mai aap ke BLOG ko pahli bar dekhkar sukhd aashchry pragat krna chahta hun;;;;i belive that duniya badli ja sakati hai.... banki baten fir kisi din...blog pranam..
बिल्कुल ठीक.... बिहार में जल-तांडव ही हो रहा है..
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