शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

घर घर होता है

करीब चार महीने हो गये घर नहीं गया। अब जाने की इच्छा हो रही है। इस वजह से कुछ समय अपने ब्लॉग को समय नहीं दे पाउँगा, क्योंकि जहाँ रहता हूँ वहां न तों कंप्यूटर और न ही इंटरनेट। लेकिन फ़िर भी घर, घर होता है और सच पूछिये वहां से आने का मन ही नहीं होता। कितना अच्छा है मेरा घर और मेरा ही क्यों सभी का घर अच्छा होता है। कितना सुकून मिलता है यहां आने के बाद। पापा, अम्मा, दादी और छोटी बहनें, कितना अच्छा लगता है। जितने दिन रहता हूँ, सभी लोग सिर-आँखों पर बैठाते है, जो चाहता हूँ वो करता हूँ। खूब घूमता हूँ। घर पहुचने के बाद वापस शहर की भीड़ में आने का मन ही नहीं होता है। पुराने दोस्तों से मुलाकात, गाँव की गलियों में घूमना, बहुत मजा आता है, है न। अब पढाई भी खत्म होने वाली है और शुरू होने वाला है संघर्षों से भरा जीवन। इसी के साथ बार-बार गाँव आना भी खत्म हो जाएगा और फ़िर मेरे पास रह जाएंगी तों केवल यहाँ की यादें। गाँव में बिजली नहीं है, इंटरनेट नहीं है, अस्पताल नहीं है, फ़िर भी यहाँ अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है। यहां कोई सुविधा नहीं है, पर इन सबसे बढ़कर यहां पर है, ठंडी हवाएं, पेड़ों की छांव और सबसे बढ़कर यहाँ मिलता है माँ-बाप का प्यार। लेकिन पेट और परिवार के लिए तों घर छोड़ना ही पड़ता है, क्योंकि यहाँ पेट भरने के साधन ही सूखते चले जा रहे है। अरे! मैं तों भावुक हो गया। चलिए छोड़िये मेरे जैसे और भी तों लोग होंगे जो घर से दूर है। अच्छा तों फ़िर मिलते है।

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

घूम आईये..इन्तजार करेंगे.

sanjay patel ने कहा…

माता-पिता का प्रेम और शुभाशीष तो ज़िन्दगी की सबसे बड़ी दौलत है. आप भाग्यवान हैं कि आप गाँव जा पात हैं , हम शहर वाले , साधन सम्पन्न लोग कितने निर्धन हैं हम ही जानते हैं.हममें से कई शहर में रह कर अपने माता-पिता से अलग दूसरी कॉलोनी या अपार्टमेंट में रह रहे हैं...आप कम से कम अंतराल से ही सही ....माता पिता से मिलने चले जाकर उनके साथ रह तो लेते हैं.

कितना भी यश और पैसा मिल जाए...अपने माता-पिता और अपने मुलुक से राब्ता बनाए रखियेगा.

अशेष शुभेच्छाएँ

swaprem tiwari ने कहा…

दोस्त इसी का नाम ज़िंदगी है, लड़ते रहो...चलते रहो...स्वप्नों को गढ़ते रहो...मंज़िल मिलेगी...दुनिया झुकेगी...जीवन में रंगों को भरते रहो।

मयंक ने कहा…

शाम ढलते ही आइये घर को .... और ज़्यादा क्या चाहिए घर को

महल मकान बहुत से बनते हैं .... हो सके घर बनाइये घर को

है सब कुछ इसी के होने से ..... हो सके तो बचाइए घर को



अच्छा लगा कि घर की बात की। याद भी आई और रोना भी ...... दोस्त घर से दूर रहना मजबूरी है पर सार्थकता तब है जब उस घर, गली और गों के लिए कुछ कर पाओ !

शुभकामनायें

धीरज राय ने कहा…

abe yesa maat likha kar ghar ki yaad aati hai aur ankhon ko naam kar jati hai