रविवार, 11 मई 2008

मां तुझे प्रणाम

मां शब्द सुनते ही ऐसा कोई व्यक्ति नही होगा जो खुश न होता होगा। मां जिसने हमें पाल-पोष कर बड़ा किया। ख़ुद कम खाया पर हमारी खुराक में कमी नहीं आने दी। मां शब्द हिन्दी शब्द संसार में सबसे छोटा शब्द है, पर इसका जितना भी अर्थ निकला जाय वह मां के लिए कम ही होगा। हम जितनी बार अर्थ निकालने कि कोशिश करेंगे मां के उतने ही अर्थ और रूप निकल कर हमारे सामने आएंगे। मां के अर्थ और रूप की व्याख्या कर पाना बहुत ही मुश्किल काम है। आज कई दिनों बाद अपने ब्लॉग पर कुछ लिखने का समय मिला और आज चूँकि पूरे विश्व में मदर्स डे मनाया जा रहा है, तों सोचा इसी विषय पर ही कुछ उकेरा जाय। चाहें हम इंसानों की बात की जाय या जानवरों की, मां का रूप सभी में समान होता है। सभी की मां अपने बच्चों से उतना ही प्यार और दुलार करती हैं। एक चीज और है कि मां को किसी भी एक दिन में नहीं बांधा जा सकता है, क्योंकि मां का कद इतना बड़ा है कि उसके लिए साल के ३६५ दिन भी कम पड़ जायेंगे। मैं तों खैर आज के दिन अपनी मां से काफी दूर हूँ और मेरी तरह ही मेरे लगभग सभी सहपाठी भी अपनी मां से दूर हैं। फ़िर भी मैं अपनी मां को और अपने परिवार को अपने आस- पास ही पाता हूँ। मुझे लगता है कि जो हमारे यहाँ पश्चिम का अंधानुकरण हो रहा है। उससे बचने कि जरुरत है। हमारी सभ्यता- संस्कृति में मां- बाप को किसी एक दिन में नहीं बांधा है। और हमारा हर दिन इनका कर्जदार है। अतः इस तरह कि प्रवृत्ति से बचने की जरुरत है।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बचपन में पढ़ा था - माँ के क़दमों में जन्नत होती है. जीवन के मोड़ पर इसमें विश्वास और मजबूत होता गया. अभागे हैं वह लोग जो इस जन्नत को छोड़कर जहन्नुम तलाशते फिरते हैं.

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही है। लिखते रहें।